होली निमीत कविता
मुझे रोको ना मुझे टोको ना
गीत सुरीले मुझे गाने दो.......
मुझे होली के रंग उड़ाने दो
रंग केसूले के फूलों के
सब पर मुझे उड़ाने तो दो
मुझे रोको ना मुझे टोको ना
रंग पंचमी की मिठी मनुहार
आप से अद्दा करने आया हूं
पहले मुझे रंग तो उड़ाने दो
मत पकड़ो हाथ मेरा
रंग से ज्यादा प्रेम का भुखा हूं
एक केसूले के फूलों की
रंग भरी फुंआर तो करने दो
ना कपड़े गन्दे करने आया हूं
ना ही काले हरे कलर लगाने आया हूं
रंग तो एक बहाना है साथीयों
मैं तो प्रेम बांटने आया हूं
गीत बसंत बहार के गाने दो...
नव बर्ष में आप से मिलने आया हूं
पिछले बर्ष के गिले शिकवे
आप से मिटाने आया हूं
गीत होली के गाने आया हूं
रंग मुझे लगाने दो
बुरा ना मानो साथीयों
होली है मेरे भाई होली है
मुझे रोको ना, मुझे टोको ना
गीत बसंत बहार के गाने दो.....
कवि=दलीचंद जांगिड सातारा महाराष्ट
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