फागण री मस्ती,गणी है सस्ती
जीणी जीणी उड़े रे गुलाल
गौरी थारा गांव में....
पेहलो फागण खेलण ने आयो
गौरी थारा गांव में....
साथी ड़ा ने साथे लायो
चार दिन वास्ते उणने मनायो
पेहली होली मनावण आयो
गौरी थारा गांव में.....
गौरी थारा गांव री लुगाईयों
गुंघट में छाने माने देखण लागी
नाक आंखीयो कान सू जमाई
इण घर रो गणो रुपाळो है
लुगाईयों री बातों सुण सुण
साथीडो मारो कान में सुणावे है
मैं पेहलो भागण मनावण आयो
गौरी थारा गांव में.....
सहेलियाँ थारी छाने माने
बूट गोगल पेन रुमाल
चोरी छुपके मारा चुरावै है
रित जीजा साळी री
पुराणी अजब निभावै है
मांग राकै रुपयों पैसों री
मंद मंद मन माए मुस्करावै है
साथी ड़ा रे साथे
पेहल फागण खेलण आयो
गौरी थारा गांव में.....
सगळा साळा साळीयो मिलकर
लाल पिळो केशरीया अस्मानी
रंग माने गणो लगावै है
मैं आयो गौरी थारा गांव में
पेहलो फागण मनावण ने
गीत फागण रा लुगाईयों गावै
सगळो परिवार हर्ष मनावै है
सासू सुसरो जी कुवॅर सा कहे
मान जमाई सा रो राक पुकारे है
जिमण बैठू जद थाळी पर
पुरस्कारी करे जोर जबरदस्ती सू
मेवा ओर मिठाई री
ओ थाट पाट ससुराल में
रित बडैरों री निभावै है
मे तो पेहल फागण खेलण आयो
गौरी थारा गांव में.....
*जीणी जीणी उड़े रे गुलाल
*गौरी थारा गांव में.....
जय श्री विश्वकर्मा जी री सा
लेखक कवि दलीचंद जांगिड सातारा महाराष्ट्र
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Kavi dalchand ji satara |
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