![]() |
कवि दलीचन्द जी सतारा |
जमीन से महंगी दवा हो गई.
कविता पढ़ जनता का प्रतिउत्तर
कवि की कलम लिख रही,
वेदना इस संसार की।
केमिकल के खाद से उपजे,
आधुनिक पैदावार की।।
पढ़कर वेदना ऐसी साहब,
व्यथित है जग सारा।
जमीन कम रह गई है और,
लोगों का हुआ अधिक पसारा।।
लोग बढ़ गए जगत में तो,
भोजन ज्यादा चाहिए।
क्या और कैसे करें व्यवस्था,
जुगाड़ लगाना चाहिए।।
विज्ञान ने नित नए हुकुम,
अविष्कार जो कीने हैं।
गोबर छोड़ो, यूरिया डालो,
कुदरतीय तत्व छीने हैं।।
लकड़ी मुड़ जाती है करके,
प्लाईवुड बनाया है।
प्लाई के लिए सारे वृक्षों को,
हमने काट गिराया है।।
नदियां रोककर बांध बनाए,
और विद्युत बनाई है।
पर्वत काटकर सड़कें बनाई,
गाड़ियां बहुत भगाई है।।
तीर्थ स्थल में यात्रियों के लिए,
होटलें खूब बनाई है।
उसी में बने हुए हैं शौचालय,
गन्दगी बहुत फैलाई है।।
वही गन्दगी भरा पानी अब,
नदियों में बहता है।
जिनको हम माता कहते हैं,
ये कैसी पवित्रता है।।
कैसे रोकेंगा कविवर कलम से,
यह सब लोगों का रोष है।
विनाशकारी ये पर्यावरण है पर,
घातक मानव को कहां होश है।।
तेज धार करो कलम की इसे,
दिल्ली के तख्तधारियों तक पहुंचाओ।
जहां सुनवाई होती है सम्भव,
कविराज अपनी वेदना सुनाओ।।
मैं व्यथित इस काव्य पाठ से,
मन ही मन घबराऊं।
आप करो कोई उपाय तो मैं,
जनता को साथ लेकर आऊं।।
सुन्दर रचना कविवर आपकी,
हां जमीन से महंगी हुई दवाई।
बनावटी आहार खा खा करके,
हमने इस तन की वाट लगाई।।
चौखी लिखी कविता हुजूर आपने,
आछो विषय उठायो है।
जनता ने यह वेदना पढ़कर,
जनता को जी अति घबरायो है।।
प्रशंसनीय लेख /कविता आपकी,
आपने गणों गणों साधुवाद जी।
जमीन से महंगी दवा हो गई,
बताओ कविराज इतना पैसा कहा से लाएंगे।
करो मन के व्यक्त भाव,
ह्रदय के तल से उठते भाव।
एक कविता क्रान्तिकारी लिख दो,
आवाज बुलंदकर लिख भेज दो।
दिल्ली के दरबार में..
जय श्री विश्वकर्मा जी की सा
![]() |
कवि दलीचन्द जी सतारा |
Comments
Post a Comment