मैं पथिक हूं जिन्दगी के पथ पर..
मैं पथिक हूं जीवन पथ का...
जिन्दगी हमारी कुछ इस तरह से गुजरी
बाल्य अवस्था हमारी दोस्तों संग खेल कूद में गुजरी
कभी विद्या ग्रहण करने में गुजरी
कभी धन अर्जन की कला सिखने में गुजरी
कभी प्रदेश में यारों की यारी में गुजरी
तो कभी घर की जिम्मेदारी में गुजरी
कभी रिश्तें निभाने में तो कभी रुठों को मनाने में गुजरी
कभी धूप में तो कभी छाव में गुजरी
कभी दो पक्षों के वाद विवाद मिटाने में गुजरी
कभी खुशी तो कभी गम से होकर गुजरी
हा भाई हा यह जिन्दगी है ये जिन्दगी है इसी तरह गुजरी
हाँ ये जिन्दगी हमारी जिन्दगी के कई मोड़ से होकर गुजरी
कर मेहनत आशियाना बनाते बनाते गुजरी
संसारिक रिती-रिवाजों को निभाते निभाते गुजरी
जांगिड समाज को संगठित करते करते गुजरी
हाँ इस तरह 70 बर्ष उम्र हमारी गुजरी
जिन्दगी के सारे राज अभी नहीं बताऊंगा
राज को राज रहने दो मेरे प्रेमी मित्रों
कभी फुर्सत में जिन्दगी के ओर राज बतलाऊंगा
चलता रहा जीवन राह पर पथिक बनकर
आज तक कहता आया हूं मेरे चाहने वाले मित्रों
यही जिन्दगी यही है जिन्दगी
जिन्दगी हमारी कुछ इस तरह से गुजरी.....
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जय श्री विश्वकर्मा जी की
लेखक.
लेखक दलीचंद जांगिड सातारा महाराष्ट्र
मोबाईल 9421215933
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