कविता अजर-अमर है कविताओं पे मेरी जान निसावर थी कैसे बताऊं कविता से कितना प्यार था कविता के हर शब्द शब्द में मिठास था "कवि हूं कवि" ये मेरी पहली कविता थी दिल के तल से मन के भाव उठते थे ज्ञान चक्षु का मन पर कुछ पेहरा था लिखने के पहले मैं अनजान अज्ञान था कागज पर उतरे हर शब्दों से मुझे प्यार था कविताओं के लिए अनेक रातें जागा था मन मंदीर से जब घंटी बजती थी कलम कागज पर चल पड़ती थी पता नहीं क्या लिखना कहा रुकना था माँ शारदे की जब जब कृपा बरसती थी एक सुंदर छीन आंखो के सामने खड़ा हो जाता था अद्भूत कविता आकार ले लेती थी यही माँ शारदे का दिया हुआ प्रसाद था सिलसिला कविता का चल हि रहा था मन प्रफुल्लित हर्ष उल्हास से भरा था झिलमिल दीपक दिख रहा समिप था अब मंझिल मन चाही ज्यादा दूर न थी कविताओं पे मेरी जान निसावर थी कैसे बताऊं मैं तुम्हें कविता से कितना प्यार था कविता के हर शब्द में मिठास था ह्रदय के तल से उठे ये मेरे मन के भाव थे कविता कर सोलाह श्रृंगार पंहुच जाती मँग्नीज के द्वार संपादक के मन भाती व प्रेस में छ्प जाती थी जांगिडों के घर घर पंहुच कर आशिर्वाद पाती थी सबके आशिर्वा...